Thursday 22 April 2021

Hidden Truth of Taj Mahal - Taj Mahal or Tejo Mahalaya

 No one has ever challenged it except Prof. P. N. Oak, who believes the whole world has been duped. 



In his book Taj Mahal: The True Story, Oak says -

TheTaj Mahal is not Queen Mumtaz's tomb but an ancient Hindu temple palace of Lord Shiva (then known as Tejo Mahalaya ) . 




In the course of his research O AK discovered that the Shiva Temple palace was usurped by Shah Jahan from then Maharaja of Jaipur, Jai Singh. In his own court chronicle, Badshahnama,
Shah Jahan admits that an exceptionally beautiful grand mansion in Agra was taken from Jai Singh for Mumtaz's burial . The ex-Maharaja of Jaipur still retains in his secret collection two orders from Shah Jahan for surrendering the Taj building. Using captured temples and mansions, as a Burial place for dead courtiers and royalty was a common practice among Muslim Rulers.
 
For example, Humayun, Akbar, Etmud-ud-Daula and Safdarjung are all buried in such mansions. Oak's inquiries began with the name of Taj Mahal. He says -
 
The term " Mahal " has never been used for a building in any Muslim countries from Afghanistan to Algeria . "The unusual explanation that the term Taj Mahal derives from Mumtaz Mahal was illogical in at least two respects.
 
Firstly, her name was never Mumtaz Mahal but Mumtazul-Zamani," he writes.
Secondly, one cannot omit the first three letters 'Mum' from a woman's
Name to derive the remainder as the name for the building. 
"Taj Mahal, he claims, is a corrupt version of Tejo Mahalaya, or Lord Shiva's Palace . Oak also says the love story of Mumtaz and Shah Jahan is a fairy tale created by Court Sycophants, blundering historians and sloppy archaeologists not a
Single Royal Chronicle of Shah Jahan's time corroborates the love story.
 
Furthermore, Oak cites several documents suggesting the Taj Mahal predates Shah Jahan's era, and was a temple dedicated to Shiva, worshipped by Rajputs of Agra city. For example, Prof. Marvin Miller of New York took a few samples from the riverside doorway of the Taj. 

Carbon dating tests revealed
That the door was 300 years older than Shah Jahan. European traveler Johan Albert Mandelslo, who visited Agra in 1638 (only seven years after Mumtaz's death), describes the life of the city in his memoirs. But he makes no reference to the Taj Mahal being built. The writings of Peter Mundy, an English visitor to Agra within a year of Mumtaz's death, also suggest the
Taj was a noteworthy building well before Shah Jahan's time.
 
Prof. Oak points out a number of design and architectural inconsistencies
That support the belief of the Taj Mahal being a typical Hindu temple
Rather than a mausoleum. Many rooms in the Taj ! Mahal have remained sealed
Since Shah Jahan's time and are still inaccessible to the public . Oak
Asserts they contain a headless statue of Lord Shiva and other objects commonly used for worship rituals in Hindu temples Fearing political backlash, Indira Gandhi's government tried to have Prof. Oak's book withdrawn from the bookstores, and threatened the Indian publisher of the first edition dire consequences . There is only one way to discredit or
Validate Oak's research.
 
The current government should open the sealed rooms of the Taj Mahal under U.N. Supervision, and let international experts investigate.
 
Do circulate this to all you know and let them know about this reality.....


Aerial view of the Taj Mahal



The interior water well



Close up of the dome with pinnacle




Close up of the pinnacle

 


Inlaid pinnacle pattern in courtyard



Red lotus at apex of the entrance



Rear view of the Taj & 22 apartments




View of sealed doors & windows in back



Typical Vedic style corridors



The Music House--a contradiction



A locked room on upper floor



A marble apartment on ground floor



The OM in the flowers on the walls



Staircase that leads to the lower levels



300 foot long corridor inside apartments



One of the 22 rooms in the secret lower level



Interior of one of the 22 secret rooms




Interior of another of the locked rooms



Vedic design on ceiling of a locked room



Huge ventilator sealed shut with bricks



Secret walled door that leads to other rooms



Secret bricked door that hides more evidence



Palace in Barhanpur where Mumtaz died



Pavilion where Mumtaz is said to be buried





Mystic India











 

Wednesday 21 April 2021

भारत की महान् देनें : पुरातात्त्विक साक्ष्य

 


परम्परा से भारत को ‘विश्वगुरु’ कहा जाता है. इसका कारण यह है कि धर्म, दर्शन, विज्ञान, वास्तु, ज्योतिष, खगोल, स्थापत्यकला, नृत्यकला, संगीतकला, आदि सभी तरह के ज्ञान का जन्म भारत में हुआ। मध्यकाल में भारतीय गौरव को नष्ट किया गया और आज का भारतीय, पश्चिमी सभ्यता को महान् समझता है। इसका कारण यह है कि योजनाबद्ध तरीके से हमारे शास्त्रों को ‘मिथक’ और ‘काल्पनिक’ कहकर प्रचारित किया गया और केवल पुरातात्त्विक साक्ष्यों को ही प्रमाण माना गया। इसलिए यहाँ हम आपको भारत की उन अद्भुत देनों के बारे में बता रहे हैं, जिनके पुरातात्त्विक साक्ष्य उपलब्ध हैं।

लेखन-कला :


प्राचीन भारत की लेखन-सामग्री में क़लम एक लेखन सामग्री के रूप में प्रयोग होती थी। संस्कृत का एक श्लोक है, जिसमें लेखन के लिए आवश्यक उपकरणों की जानकारी दी गई है। विशेष बात यह है कि इस श्लोक में जिन उपकरणों को गिनाया गया है, उनमें से एक का नाम ‘क’ से आरम्भ होता है :
कुम्पी कज्जल केश कम्बलमहो मध्ये शुभ्रं कुशम् काम्बी कल्म कृपाणिका कतरणी काष्ठं तथ् कागलम्।
कीकी कोटरि कल्मदान क्रमणेः तथा कांकरो एतै रम्यककाक्षरैश्च सहितः शास्त्रं च नित्यं लिखेत्।।
इन 17 वस्तुओं में से काग़ज़, भूर्जपत्र, ताड़पत्र आदि की विस्तृत चर्चा मिलती है। अब प्रमुखतः क़लम और स्याही का प्रयोग होता है।
10वीं शताब्दी की एक चंदेलकालीन प्रतिमा (सुरसुन्दरी) में एक नारी को कलम और काग़ज़ का उपयोग करते हुए पत्र लिखते हुए दर्शाया गया है। यह प्रतिमा कलकत्ता के भारतीय संग्रहालय में विद्यमान है,


शौचालय :


भारत ही वह देश है जिसने प्राचीन समय में ‘कमोड’ सिस्टम का शौचालय हुआ करता था। 2500 ई.पू. के मोहनजोदड़ो की खुदाई में स्नानघरों में ‘कमोड’ सिस्टम के निजी शौचालय मिले हैं, जिससे इस तथ्य की पुष्टि होती है। इस कालखंड में विश्व में और कहीं भी ऐसे शौचालयों का कोई विवरण नहीं मिलता।

शतरंज का खेल :
 





वर्तमान में लोकप्रिय शतरंज के खेल का जन्म भारत में ही हुआ था और इसे प्राचीन समय में ‘चतुरंग’ कहा जाता था। चतुरंग एवं शतरंज— दोनों में हाथी (Elephant), घोड़ा (Horse), नौका (Boat) एवं सैनिक (Pawn) की संख्या 4-4 होती है। चतुरंग में जिसे नौका कहते हैं, वही शतरंज में ऊँट (Camel’) के नाम से जाना जाता है एवं सैनिक को चतुरंग में वटिक तथा शतरंज में प्यादा कहा जाता है। दोनों के क्रीड़ा पटल (Game Board) में 64-64 वर्ग होते हैं। चतुरंगदीपिका नामक प्राचीन ग्रन्थ में चतुरंग खेलने की विधि का वर्णन है।

श्रीरामसेतु :


हाल ही में अमेरिकी भू-वैज्ञानिकों ने मान लिया है कि भारत में रामेश्वरम के नजदीक पामबन द्वीप से श्रीलंका के मन्नार द्वीप तक लंबी बनी पत्थरों की 30 मील लंबी श्रृंखला मानव-निर्मित है। इस तरह हिन्दू पौराणिक ग्रंथों में जिस पुल का जिक्र है और जो भारत-श्रीलंका को जोड़ता है, वह सच है। अमेरिका में डिस्कवरी कम्युनिशेन के साइंस चैनल ने ‘व्हाट ऑन अर्थ एनसिएंट लैंड एंड ब्रिज’ नाम से एक वृत्तचित्र का प्रसारण भी किया है, जिसमें भू-वैज्ञानिकों की तरफ से यह विश्लेषण इस ढांचे के बारे में किया गया है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2002 में नासा ने श्रीरामसेतु के चित्र लेकर उसे 17,50,000 वर्ष प्राचीन बताया था।

साइकिल :


साइकिल का आविष्कार आज से दो सौ साल पहले यूरोप में नहीं, बल्कि दो हज़ार वर्ष पहले भारत में हुआ था। तमिलनाडु के प्राचीन पंचवर्णस्वामी मंदिर की एक दीवार पर साइकिल पर बैठे एक व्यक्ति की मूर्ति उत्कीर्ण है, जिसमें साफ तौर पर पैडल मारता हुआ बड़ी-बड़ी मूंछवाला भारतीय व्यक्ति दिख रहा है। इस आकृति ने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया है कि ऐसा कैसे हो सकता है. क्या भारतीय अविष्कार करने में दुनिया से इतना आगे थे?

स्वर्ण सींगों वाला बैल :


यह केवल कवि कल्पना नहीं है कि भारत सोने की चिड़िया था. भारत इतना धनी देश था कि यहाँ बच्चों के खिलौनों में सोने जड़े होते थे। हरियाणा में मिला सिंधु घाटी सभ्यता का सोने के सींगोंवाले बैल की सुंदर मूर्ति इसका उदाहरण है। सम्प्रति यह मूर्ति हरियाणा राज्य पुरातत्त्व और संग्रहालय में विद्यमान है।

भारत का सामुद्रिक अभियान :


समुद्र-यात्रा भारतवर्ष में सनातन से प्रचलित रही है। स्वयं महर्षि अगस्त्य समुद्री द्वीप-द्वीपान्तरों की यात्रा करनेवाले महापुरुष थे। संस्कृति के प्रचार के निमित्त या नये स्थानों पर व्यापार के निमित्त दुनिया के देशों में भारतीयों का आना-जाना था। प्राचीन जावा में एक लकड़ी के डबल आउटरिगर और रवाना हुए बोरोबुदुर जहाज के 8वीं शताब्दी के चित्रण से पता चलता है कि इंडोनेशिया और मेडागास्कर के बीच हिंद महासागर में प्राचीन व्यापारिक संबंध थे और कभी-कभी इसे ‘दालचीनी-मार्ग’ भी कहा जाता था। 5वीं शती में हुए वराहमिहिर कृत ‘बृहत्संहिता’ तथा 11वीं शती के महाराजा भोज कृत ‘युक्तिकल्पतरु’ में जहाज-निर्माण पर प्रकाश डाला गया है।

मोक्षपटम् (साँप-सीढ़ी) का खेल :


राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली में साँप-सीढ़ी के खेल का एक पुराना चित्र रखा हुआ है, जिससे यह सिद्ध होता है कि इस खेल का आविष्कार भारत में हुआ था. महान सन्त-कवि ज्ञानेश्वर (1275-1296) ने इस खेल को बनाया था। इस खेल को बनाने का मुख्य उद्देश्य बच्चों को सत्कर्म और सद्धर्म की शिक्षा देना था। सीढ़ियाँ अच्छे कर्म को दर्शाती थीं, वहीं साँप हमारे बुरे कर्म को दर्शाते थे। हमारे अच्छे कर्म हमें 100 के करीब लेकर जाते हैं, जिसका अर्थ था मोक्ष। वहीं बुरे कर्म हमें कीड़े-मकोड़े के रूप में दुबारा जन्म लेने पर मजबूर करते हैं। यह खेल उन्नीसवीं शताब्दी में इंग्लैण्ड पहुँच गया। इसे शायद इंग्लैण्ड के शासक अपने साथ ले गए थे और उन्होंने इसे ‘स्रैक्स एण्ड लैडर्स’ कहकर प्रचारित किया। 1943 में ये खेल सं.रा. अमेरिका पहुँचा और वहाँ इसे मिल्टन ब्रेडले (1836-1911) ने एक नया रूप देकर इसे थोड़ा आसान बनाया।


आतिशबाजी :


आतिशबाजी चीन की देन मानी जाती है, किन्तु यहाँ भी भारतीय ही आगे थे। लगभग 1,500 वर्ष पुराने ग्रन्थ शुक्रनीति में बहुत स्पष्टता से नालिक (बंदूक-जैसा कोई यंत्र) और बृहन्नालिक (तोप जैसा कोई यंत्र) जैसे यंत्रों का उल्लेख मिलता है। इस ग्रन्थ में अग्निचूर्ण बनाने की भी विधि भी मिलती है जिसके अनुसार इसके लिये अंगार (कोयला), गंधक, सुवर्चि लवण, मन:शिला, हरताल, सीस-किट्ट, हिंगुल, कान्तलोह की रज, खपरिया, जतु (लाख), नील्य, सरल-निर्यास (रोजिन) – इन सब द्रव्यों की बराबर अथवा न्यूनाधिक उचित मात्रा उपयोग में लाना चाहिए। यह ग्रंथ अग्निसंयोग द्वारा अग्निचूर्ण से निर्मित गोलों को फेंके जाने के विषय में भी जानकारी प्रदान करता है :
सीसस्य लघुनालार्थे ह्यन्यधातुभवोअपि वा।
लोहसारमयं वापि नालास्त्रं त्वन्यधातुजम।
नित्यसंमार्जनस्वच्छमस्त्रपातिभिरावृतम।
अंगरस्यैव गंधस्य सुवर्चिलवनस्य च।
शिलाया हरितालस्य तथा सीसमलस्य च।
हिंगुलस्य तथा कांतरजस: कर्परस्य च।


टॉर्च का आविष्कार :


माना जाता है कि एक ब्रिटिश डेविड मिसेल ने 1899 में टॉर्च का आविष्कार किया था, जबकि यह सही नहीं है। कोटा-शैली की 1775 ई. की एक पेंटिंग वाल्टर आर्ट म्यूजियम, बाल्टीमोर में रखी हुई है, जिसमें एक शिकारी को हिरणों का शिकार करते हुए दिखाया गया है और एक स्त्री हिरणों पर टॉर्च पर प्रकाश फेंकते हुए शिकारी का मार्गदर्शन कर रही है।

सुपर क्वालिटी का लोहा :


दिल्ली के ‘कुतुब परिसर’ में लगभग 7 मीटर ऊँचा और लगभग 6 हज़ार किलो भार का, विश्वविख्यात लौह-स्तम्भ है, जो भारतीय धातुकर्म का बेजोड़ नमूना है। यह स्तम्भ लगभग 1,100 वर्ष पुराना है और इसमें लोहे की मात्रा करीब 98% है और इसमें अभी तक जंग नहीं लगा है। दुनियाभर के वैज्ञानिक और रसायनशास्त्री इस स्तम्भ को देखकर हैरत में पड़ जाते हैं।

भारतीय वास्तुशिल्पियों के कौशल का अद्भुत नमूना : कैलास मन्दिर


प्राचीन भारतीय पूरे के पूरे पर्वत को तराशकर मन्दिर का निर्माण करने में कुशल थे. एलोरा (जिला औरंगाबाद) का कैलास मन्दिर इसी तरह का संसार का अनूठा मन्दिर है, जिसे राष्ट्रकूट वंश के नरेश कृष्ण (प्रथम) (756-773 ई.) ने निर्मित कराया था। 276 फीट लम्बा, 157 फीट चौड़ा और 90 फुट ऊँचा यह मन्दिर एक पूरे पर्वत को ऊपर से नीचे तराशकर द्रविड़-शैली के मन्दिर के रूप में निर्मित किया गया है। इसके निर्माण के क्रम में लगभग 40 हज़ार टन भार के पत्थरों को पर्वत से हटाया गया। मन्दिर भीतर-बाहर चारों ओर मूर्ति-अलंकरणों से भरा हुआ है। इस मन्दिर के आँगन के तीन ओर कोठरियों की पाँत थी जो एक सेतु द्वारा मन्दिर के ऊपरी खंड से संयुक्त थी। अब यह सेतु गिर गया है। सामने खुले मण्डप में नन्दी है और उसके दोनों ओर विशालकाय गज तथा स्तम्भ बने हैं। यह कृति भारतीय वास्तुशिल्पियों के कौशल का अद्भुत नमूना है।

Monday 19 April 2021

Ellora Caves - Indian Rock-Cut Architecture

 The Hindu, Buddhist and Jain Caves at Ellora were chiseled between the 4th and the 9th centuries. Ellora, considered amongst the finest examples of rock-cut architecture, dates back to the Rashtrakuta Dynasty, about 1,500 years ago. Of the 34 caves, 12 are Buddhist, 17 Hindu and 5 Jain. Maintained by the Archaeological Survey of India (ASI), The Ellora Caves were declared a World Heritage Site in 1983.






















गौतम बुद्ध - बुद्ध के बारे में कुछ आकर्षक तथ्य

गौतम बुद्ध (जन्म 563 ईसा पूर्व – निर्वाण 483 ईसा पूर्व) एक श्रमण थे जिनकी शिक्षाओं पर बौद्ध धर्म का प्रचलन हुआ। इनका जन्म लुंबिनी में 56...