Thursday 17 June 2021

गौतम बुद्ध - बुद्ध के बारे में कुछ आकर्षक तथ्य




गौतम बुद्ध (जन्म 563 ईसा पूर्व – निर्वाण 483 ईसा पूर्व) एक श्रमण थे जिनकी शिक्षाओं पर बौद्ध धर्म का प्रचलन हुआ।

इनका जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। उनकी माँ का नाम महामाया था जो कोलीय वंश से थीं, जिनका इनके जन्म के सात दिन बाद निधन हुआ, उनका पालन महारानी की छोटी सगी बहन महाप्रजापती गौतमी ने किया। 29 वर्ष की आयुु में सिद्धार्थ विवाहोपरांत एक मात्र प्रथम नवजात शिशु राहुल और धर्मपत्नी यशोधरा को त्यागकर संसार को जरा, मरण, दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग एवं सत्य दिव्य ज्ञान की खोज में रात्रि में राजपाठ का मोह त्यागकर वन की ओर चले गए। वर्षों की कठोर साधना के पश्चात बोध गया (बिहार) में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से भगवान बुद्ध बन गए।




जीवन वृत्त


उनका जन्म 563 ईस्वी पूर्व के बीच शाक्य गणराज्य की तत्कालीन राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी में हुआ था, जो नेपाल में है। लुम्बिनी वन नेपाल के तराई क्षेत्र में कपिलवस्तु और देवदह के बीच नौतनवा स्टेशन से 8 मील दूर पश्चिम में रुक्मिनदेई नामक स्थान के पास स्थित था। कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी के अपने नैहर देवदह जाते हुए रास्ते में प्रसव पीड़ा हुई और वहीं उन्होंने एक बालक को जन्म दिया। शिशु का नाम सिद्धार्थ रखा गया। 



गौतम गोत्र में जन्म लेने के कारण वे गौतम भी कहलाए। क्षत्रिय राजा शुद्धोधन उनके पिता थे। परंपरागत कथा के अनुसार सिद्धार्थ की माता का उनके जन्म के 7 दिन बाद निधन हो गया था। उनका पालन पोषण उनकी मौसी और शुद्दोधन की दूसरी रानी महाप्रजावती (गौतमी)ने किया। शिशु का नाम सिद्धार्थ दिया गया, जिसका अर्थ है "वह जो सिद्धी प्राप्ति के लिए जन्मा हो"। 



जन्म समारोह के दौरान, साधु द्रष्टा आसित ने अपने पहाड़ के निवास से घोषणा की- बच्चा या तो एक महान राजा या एक महान पवित्र पथ प्रदर्शक बनेगा। शुद्दोधन ने 5वें दिन एक नामकरण समारोह आयोजित किया और 8 ब्राह्मण विद्वानों को भविष्य पढ़ने के लिए आमंत्रित किया। सभी ने एक सी दोहरी भविष्यवाणी की, कि बच्चा या तो एक महान राजा या एक महान पवित्र आदमी बनेगा। 


दक्षिण मध्य नेपाल में स्थित लुंबिनी में उस स्थल पर महाराज अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व बुद्ध के जन्म की स्मृति में एक स्तम्भ बनवाया था। बुद्ध का जन्म दिवस व्यापक रूप से थएरावदा देशों में मनाया जाता है। सुद्धार्थ का मन वचपन से ही करुणा और दया का स्रोत था। इसका परिचय उनके आरंभिक जीवन की अनेक घटनाओं से पता चलता है। घुड़दौड़ में जब घोड़े दौड़ते और उनके मुँह से झाग निकलने लगता तो सिद्धार्थ उन्हें थका जानकर वहीं रोक देता और जीती हुई बाजी हार जाता। खेल में भी सिद्धार्थ को खुद हार जाना पसंद था क्योंकि किसी को हराना और किसी का दुःखी होना उससे नहीं देखा जाता था। सिद्धार्थ ने चचेरे भाई देवदत्त द्वारा तीर से घायल किए गए हंस की सहायता की और उसके प्राणों की रक्षा की।


शिक्षा एवं विवाह

सिद्धार्थ ने गुरु विश्वामित्र के पास वेद और उपनिषद्‌ को तो पढ़ा ही, राजकाज और युद्ध-विद्या की भी शिक्षा ली। कुश्ती, घुड़दौड़, तीर-कमान, रथ हाँकने में कोई उसकी बराबरी नहीं कर पाता। 16 वर्ष की उम्र में सिद्धार्थ का कन्या यशोधरा के साथ विवाह हुआ। पिता द्वारा ऋतुओं के अनुरूप बनाए गए वैभवशाली और समस्त भोगों से युक्त महल में वे यशोधरा के साथ रहने लगे जहाँ उनके पुत्र राहुल का जन्म हुआ। लेकिन विवाह के बाद उनका मन वैराग्य में चला और सम्यक सुख-शांति के लिए उन्होंने अपने परिवार का त्याग कर दिया।



1. उन्होंने कहा, "मैं भगवान नहीं हूं। मैं कोई देवता नहीं हूं। न ही मैं एक मानव हूं। मैं एक जागृत व्यक्ति हूं, जिसने दुनिया का सच देखा है।"

2. उसने अपने मन का एक सूक्ष्म विश्लेषण इस तरह किया था कि वह अपने शरीर के सभी परमाणुओं की गिनती करने में सक्षम था।

3. उन्होंने कहा, "इस दुनिया में कुछ भी ठोस नहीं है।" जिसका आधुनिक अर्थ यह है कि सब कुछ परमाणुओं से बना है और ये परमाणु बार-बार टूट जाते हैं और सुधर जाते हैं।

4. वह एक और कारण से प्रसिद्ध थे कि उन्होंने सभी भाषाओं के लोगों को अपनी भाषा में पढ़ाया, जो भी उनसे मिला। हालांकि उन्होंने विधानसभा में हतोत्साहित करने के दौरान आम लोगों की पाली भाषा को चुना।

5. गहरे जंगल में ध्यान करते समय कोई भी जानवर कभी भी उसे नुकसान नहीं पहुंचाएगा। यह माना जाता है कि जानवर उसके प्रति आकर्षित थे, उन्होंने उसकी मेट्टा (अमिटी, परोपकार) की शक्ति के कारण उसे शांति से देखा।



6. उन्होंने पुनर्जन्म का सिद्धांत दिया था। उन्होंने खुद को सहजता से देखा और कहा कि वह इस जन्म में 'बुद्ध' बन गए हैं क्योंकि पिछले सभी जन्मों के अच्छे कर्म हैं।

7. उन्होंने कहा कि जीवन का अंतिम लक्ष्य निबाना है, जिसका अर्थ है जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्ति।

8. अंगुलिमाल जैसे एक सीरियल किलर, जिसने 999 लोगों की हत्या की, आम्रपाली जैसी शहर की वेश्या, सक्का और उपली जैसे विवादास्पद, जिन्होंने बुद्ध को चुनौती दी, उन सभी को उनके धर्म में दीक्षा दी गई और अरहंत बन गए!

9. बहुत कम उम्र से वह कभी चुटकुले नहीं बनाता था, कभी गपशप नहीं करता था, कभी मजाक नहीं करता था, लेकिन हमेशा उसके चेहरे पर मुस्कुराहट की झलक थी जिसने सभी को मोहित कर दिया था।

10. एक दिन, जब वह भिक्षा के लिए जा रहा था, तो एक छोटे लड़के ने बुद्ध के सामने धूल का कटोरा उठाया। बुद्ध ने धीरे से मुस्कुराते हुए कहा और भिक्षा का कटोरा आगे ले गए।

जब आनंद ने बुद्ध की हँसी का कारण पूछा, तो बुद्ध ने कहा, "यह लड़का पाटलिपुत्र शहर में मेरे परिनिर्वाण (मृत्यु) के 239 साल बाद पुनर्जन्म लेगा और चक्रवती (पहिया मोड़ने वाला) सम्राट होगा और 84,000 धातु मंदिरों का निर्माण करके इतिहास बनाएगा। बौद्ध शासन के लाभ के लिए मंदिर। " वह कोई और नहीं, महान सम्राट अशोक थे!



11. वह एक बहुत अच्छी दिखती थी, नीली आँखें, चौड़े कंधे, लंबे कान, सौम्य बाल और दया और दया से भरी हुई थी। ऐसा कहा जाता है कि एक उज्ज्वल प्रभामंडल उनके निष्पक्ष शरीर से बाहर आ जाता है (आत्मज्ञान के क्षण से पहले और परिनिर्वाण के क्षण से पहले दो अवसरों पर यह रंग स्पष्ट और उज्जवल दिखाई देता है)।

12. उनका जन्म (623 BCE), प्रबुद्ध (588 BCE) और उसी दिन parinibbana (543 BCE) हुआ। यह दिन वैशाख (मई) की पूर्णिमा का दिन है।

13. बुद्ध के कई शिष्यों में, आनंद श्रेष्ठ स्मृति रखने के लिए बाहर खड़े थे। प्रथम बौद्ध परिषद के दौरान बुद्ध की शिक्षाओं के अपने शुद्ध स्मरण के लिए प्रारंभिक बौद्ध सूता पिआका के अधिकांश ग्रंथों को जिम्मेदार ठहराया जाता है।

14. आज उनका धर्म सबसे वैज्ञानिक धर्म माना जाता है और इसके कुछ रूपांतर हैं, यह समय के साथ हुआ। बुद्ध ने मन और शरीर का ऐसा ज्ञान दिया, जैसा कि वास्तव में है, किसी धार्मिक मान्यता के रास्ते में नहीं!

15. संन्यासी ने अपने जीवन में हमेशा उपवास किया है और अपने परिनिर्वाण तक लंबी दूरी की यात्रा करके सिखाया है।



16. आत्मज्ञान प्राप्त करने के बाद, उन्होंने अपने परिवार के साथ पुनर्मिलन किया और अपने पिता, माता, पत्नी और बेटे को निबाना में मार्गदर्शन किया। सुखी परिवार!

17. इस महान वैज्ञानिक का जन्म 2600 वर्ष से अधिक पहले हुआ था और उनकी अहिंसा, मेट्टा शिक्षण और ध्यान तकनीकों का अभी भी अभ्यास किया जाता है, जिसे पूरी दुनिया में सराहा जाता है।

18. बुद्ध के बारे में सबसे आकर्षक बात यह है कि हम उन्हें हमारे जैसे मानव के रूप में देख सकते हैं! सुंदर मन वाला आदमी। वह न भगवान है, न भगवान, न ही कोई पैगंबर। वह एक इंसान के रूप में एकदम सही है। इंसान की तरह जीते और मरते थे। उनके धर्म में स्वर्ग का कोई वादा नहीं है।



नरक का कोई खतरा नहीं। प्रार्थना करने की जरूरत नहीं। उसका पालन करने के लिए कोई अनिवार्य नहीं। कोई अनिवार्य अनुष्ठान नहीं। उनकी शिक्षाओं का पालन करना एक बेहतर इंसान बनाता है। यदि कोई इसका पालन नहीं करता है तो धम्म को नुकसान नहीं पहुंचता है। वह सिर्फ एक बेहतर मानव होने का अवसर चूक जाएगा।

Wednesday 9 June 2021

दिल्ली का लौह स्तम्भ - Iron pillar of Delhi



दिल्ली का लौह स्तम्भ - Iron pillar of Delhi

दिल्ली में क़ुतुब मीनार के निकट स्थित एक विशाल स्तम्भ है। यह अपनेआप में प्राचीन भारतीय धातुकर्म की पराकाष्ठा है। यह कथित रूप से राजा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य (राज 375 - 413) से निर्माण कराया गया, किन्तु कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पहले निर्माण किया गया, सम्भवतः 912 ईपू में। इस स्तम्भ की उँचाई लगभग 7 मीटर है और पहले हिन्दूजैन मन्दिर का एक भाग था। 
13वीं सदी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने मन्दिर को नष्ट करके क़ुतुब मीनार की स्थापना की। लौह-स्तम्भ में लोहे की मात्रा करीब 98% है और अभी तक जंग नहीं लगा है।



लगभग 1600 से अधिक वर्षों से यह खुले आसमान के नीचे सदियों से सभी मौसमों में अविचल खड़ा है। इतने वर्षों में आज तक उसमें जंग नहीं लगी, यह बात दुनिया के लिए आश्चर्य का विषय है। जहां तक इस स्तंभ के इतिहास का प्रश्न है, यह चौथी सदी में बना था। इस स्तम्भ पर संस्कृत में जो खुदा हुआ है, उसके अनुसार इसे ध्वज स्तंभ के रूप में खड़ा किया गया था। 



चन्द्रराज द्वारा मथुरा में विष्णु पहाड़ी पर निर्मित भगवान विष्णु के मंदिर के सामने इसे ध्वज स्तंभ के रूप में खड़ा किया गया था। इस पर गरुड़ स्थापित करने हेतु इसे बनाया गया होगा, अत: इसे गरुड़ स्तंभ भी कहते हैं। 1050 में यह स्तंभ दिल्ली के संस्थापक अनंगपाल द्वारा लाया गया।



इस स्तंभ की ऊँचाई 735.5 से.मी. है। इसमें से 50 सेमी. नीचे है। 45 से.मी. चारों ओर पत्थर का प्लेटफार्म है। इस स्तंभ का घेरा 41.6 से.मी. नीचे है तथा 30.4 से.मी. ऊपर है। इसके ऊपर गरुड़ की मूर्ति पहले कभी होगी। स्तंभ का कुल वजन 6096 कि.ग्रा. है। 1961 में इसके रासायनिक परीक्षण से पता लगा कि यह स्तंभ आश्चर्यजनक रूप से शुद्ध इस्पात का बना है तथा आज के इस्पात की तुलना में इसमें कार्बन की मात्रा काफी कम है। 



भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के मुख्य रसायन शास्त्री डॉo बी.बी. लाल इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि इस स्तंभ का निर्माण गर्म लोहे के 20-30 किलो को टुकड़ों को जोड़ने से हुआ है। माना जाता है कि 120 कारीगरों ने () दिनों के परिश्रम के बाद इस स्तम्भ का निर्माण किया। आज से 1600 वर्ष पूर्व गर्म लोहे के टुकड़ों को जोड़ने की उक्त तकनीक भी आश्चर्य का विषय है, क्योंकि पूरे लौह स्तम्भ में एक भी जोड़ कहीं भी दिखाई नहीं देता। 

सोलह शताब्दियों से खुले में रहने के बाद भी उसके वैसे के वैसे बने रहने (जंग न लगने) की स्थिति ने विशेषज्ञों को चकित किया है। इसमें फास्फोरस की अधिक मात्रा व सल्फर तथा मैंगनीज कम मात्रा में है। स्लग की अधिक मात्रा अकेले तथा सामूहिक रूप से जंग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा देते हैं। इसके अतिरिक्त 50 से 600 माइक्रोन मोटी (एक माइक्रोन = १ मि.मी. का एक हजारवां हिस्सा) आक्साइड की परत भी स्तंभ को जंग से बचाती है।




लौह स्तन्भ में वर्णित राजा चन्द्र की पहचान


इतिहासकारों ने महरौली के लोह स्तंभ को सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय के काल में रखा है और लोह स्तंभ में वर्णित राजा चंद्र को चंद्रगुप्त द्वितीय से जोड़ दिया है।

कुछ इतिहासकार मानते है कि उस लोह स्तंभ में जो लेख है वो गुप्त लेखो की शैली का है और कुछ कहते है कि चंद्रगुप्त द्वितीय के धनुर्धारी सिक्को में एक स्तंभ नज़र आता है जिसपर गरुड़ है, पर वह स्तंभ कम और राजदंड अधिक नज़र आता है।




लोह स्तंभ के अनुसार राजा चंद्र ने वंग देश को हराया था और सप्त सिंधु नदियों के मुहाने पर वह्लिको को हराया था।

जेम्स फेर्गुससनजैसे पश्चिमी इतिहासकार मानते है कि यह लोह स्तंभ गुप्त वंश के चंद्रगुप्त द्वितीय का है।



कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह स्तंभ सम्राट अशोक का है जो उन्होंने अपने दादा चंद्रगुप्त मौर्य की याद में बनवाया था। इस संबंध में एक तथ्य और है कि राजा "चंद्र" शब्द की पहचान सूर्यवंशी राजा रामचंद्र से भी है। जिनका साम्राज्य लंका के समुद्र तट तक था।




स्तम्भ-लेख


स्तम्भ की सतह पर कई लेख और भित्तिचित्र विद्यमान हैं जो भिन्न-भिन्न तिथियों (काल) के हैं। इनमें से कुछ लेख स्तम्भ के उस भाग पर हैं जहाँ पर पहुँचना अपेक्षाकृत आसान है। फिर भी इनमें से कुछ का व्यवस्थित रूप से अध्ययन नहीं किया जा सका है। इस स्तम्भ पर अंकित सबसे प्राचीन लेख 'चन्द्र' नामक राजा के नाम से है जिसे प्रायः गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय द्वारा लिखवाया गया माना जाता है। यह लेख 33.5 इंच लम्बा और 10.5 इंच चौड़े क्षेत्रफल में है। यह प्राचीन लेखन अच्छी तरह से संरक्षित है है क्योंकि यह स्तम्भ जंग-प्रतिरोधी लोहे से बना है। 
किन्तु उत्कीर्णन प्रक्रिया के दौरान, लोहे का कुछ अधिक भाग कटकर दूसरे अक्षरों से मिल गया है जिससे कुछ अक्षर गलत हो गए हैं।



यस्य ओद्वर्त्तयः-प्रतीपमुरसा शत्त्रुन् समेत्यागतन् वङ्गेस्ह्वाहव वर्त्तिनोस्भिलिखिता खड्गेन कीर्त्तिर् भुजेतीर्त्वा सप्त मुखानि येन समरे सिन्धोर् ज्जिता वाह्लिकायस्याद्य प्यधिवास्यते जलनिधिर् व्विर्य्यानिलैर् दक्षिणाःखिन्नस्य एव विसृज्य गां नरपतेर् ग्गामाश्रितस्यैत्राम् मूर्(त्)या कर्म्म-जितावनिं गतवतः कीर्त्(त्)या स्थितस्यक्षितौशान्तस्येव महावने हुतभुजो यस्य प्रतापो महान्नधया प्युत्सृजति प्रनाशिस्त-रिपोर् य्यत्नस्य शेसह्क्षितिम्प्राप्तेन स्व भुजार्जितां च सुचिरां च ऐकाधिराज्यं क्षितौ चन्द्राह्वेन समग्र चन्द्र सदृशीम् वक्त्र-श्रियं बिभ्रातातेनायं प्रनिधाय भूमिपतिना भावेव विष्नो (ष्नौ) मतिं प्राणशुर्विष्णुपदे गिरौ भगवतो विष्णौर्धिध्वजः स्थापितः




Monday 7 June 2021

When In Europe People Lived In Caves, In India We Decorate Them

When most of Europe lived in Caves, in India they turned them into Unique Works of Art that are still admired today. 


Ajanta Caves are located in Maharashtra, India and are World Famous for their Unique and Exquisite Works. They were created in the 2nd century BC and are a Living Example of his Masonry of the Past. 


There are a total of 30 Caves, carved into The Ravine Rocks and each of them is A Unique Masterpiece of Visual and Sculptural Art. 


Each Cave has a Different Architecture and Painting. 


Thousands of Travelers travel to the Maharashtra every year to explore These Magnificent World Heritage Sites.

The Ajanta Caves are mentioned in the Memoirs of Several Medieval-Era Chinese Buddhist Travelers to India and by a Mughal-Era Official of Akbar Era in the early 17th Century. 


They were covered by Jungle until accidentally "Discovered" and brought to Western Attention in 1819 by a colonial British Officer Captain John Smith on a Tiger-Hunting Party. 



The Caves are in The Rocky Northern Wall of the U-Shaped Gorge of The River Waghur, in the Deccan Plateau. 


Within the Gorge are a number of Waterfalls, audible from outside The Caves when the River is high.



Ajanta is one of The Major Tourist Attractions of Maharashtra. It is about 6 kilometres (3.7 miles) from Fardapur, 59 kilometres (37 miles) from the City of JalgaonMaharashtraIndia, 104 kilometres (65 miles) from the city of Aurangabad and 350 kilometres (220 miles) east-northeast of Mumbai



Ajanta is 100 kilometres (62 miles) from the Ellora Caves, which contain Hindu, Jain and Buddhist Caves, The Last Dating from a period similar to Ajanta. The Ajanta style is also found in the Ellora Caves and other Sites such as the Elephanta Caves, Aurangabad Caves, Shivleni Caves and The Cave Temples of Karnataka.

Sunday 6 June 2021

Navapur Railway Station - Half Gujarat and Half Maharashtra



Navapur Railway Station is located on The Border of Gujarat and Maharashtra.

There are 2 Such Railway Stations in the Country, half of which falls in One State and The Rest in Another State.



One Such Station is Navapur Railway Station on the Border of Maharashtra and Gujarat State.

This is A Unique Railway Station in the Country, on which The Borders of 2 States Meet. To show The Boundaries of 2 States, A Bench has been put in the middle of this Station, on which The Boundaries of Both The States have been told by Painting.

In this, where Gujarat is written on One Side, Maharashtra is written on the Other Side.

 Navapur Town of Nandurbar DistrictMaharashtra. Its code is NWU. It has 3 Platforms. Passenger, MEMU, Express and Superfast Trains halt here.


Rather there is Another Raillway Station called Bhavani Mandi on The Borders of Madhya Pradesh and Rajasthan, which Unites Both The States through Railways.





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Saturday 5 June 2021

भारत स्थित एशिया का सबसे महंगा होटल - राज पैलेस

भारत का सबसे महंगा होटल ही एशिया का सबसे महंगा होटल भी है 
तथा विश्व मे 5वे स्थान पर है, उसका नाम है "राज महल या राज पैलेस" 


राज पैलेस राजस्थान के जयपुर मे स्थित है, जिसे 1727 ईस्वी मे तत्कालीन राज के प्रधानमंत्री "ठाकुर मोहन सिंह जी" ने बनवाया था। इस महल मे आज भी उनकी 16वी पीढ़ी के वंशज और वर्तमान मालिक "राजकुमारी जयेन्द्र कुमारी" निवास कर रही है।


इस होटल के "शाही महल सुइट" का 1 रात का किराया करीब 65,000 अमेरिकी डॉलर है। जिसे यदि आज के हिसाब से भारतीए रुपये मे देखे तो यह करीब 47 लाख 50 हजार होगा।


होटल को भारतीए सरकार द्वारा "भारत के सर्वश्रेष्ठ विरासती होटल" के रूप मे सम्मानित किया गया है, इतना ही नहीं यह होटल "विश्व यात्रा पुरस्कारों " द्वारा लगातार 7 बार "दुनिया के अग्रणी विरासती होटल" के रूप मे चुना जा चुका है।


1997 मे होटल के रूप मे खुले इस महल को सिर्फ 2 साल बाद 1999 मे "राष्ट्रीय रत्न पुरस्कार" से सम्मानित किया गया।


2002 मे बैंकॉक मे "इंटरनेशनल गोल्ड स्टार मिलेनियम अवॉर्ड" से सम्मानित किया गया।


2006 मे "स्पेन" के "मेड्रिड" मे होटल खान-पान और पर्यटन के लिए 32 वां "अंतराष्ट्रीयए पुरस्कार" और सर्वश्रेष्ठ विरासत होटल के लिए "राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कार" प्राप्त हुआ।


2007 - 2013 तक लगातार 7 बार विश्व के अग्रणी विरासत होटल का खिताब मिला।


2008 - 2014 तक लगातार 7 बार एशिया के अग्रणी होटल सुइट का खिताब मिला।


CNN ने राज पैलेस को दुनिया का सबसे शानदार डेस्टिनेशन बताया है तथा इसके प्रेसिडेंशियल सुइट को एशिया का सबसे अच्छा सुइट और दुनिया का पहला इन -सुइट संग्रहालय कहा है।


फिर भी कुछ लोग हमारे भारत को बहुत कम आँकते है, क्योंकि इसकी अखंडता और संस्कृति को आज लोग भूल चुके है। 

गौतम बुद्ध - बुद्ध के बारे में कुछ आकर्षक तथ्य

गौतम बुद्ध (जन्म 563 ईसा पूर्व – निर्वाण 483 ईसा पूर्व) एक श्रमण थे जिनकी शिक्षाओं पर बौद्ध धर्म का प्रचलन हुआ। इनका जन्म लुंबिनी में 56...